Tuesday, March 20, 2018

सच कहूँ तो मुझे एहसान बुरा लगता है

सच कहूँ तो मुझे एहसान बुरा लगता है, 
जुल्म सहता हुआ इंसान बुरा लगता है, 
कितनी मसरुक हो गयी है ये दुनिया, 
एक दिन ठहरे तो मेहमान बुरा लगता है।

एक नदिया है मजबूरी की

एक नदिया है मजबूरी की 
उस पार हो तुम इस पार हैं हम, 
अब पार उतरना है मुश्किल 
मुझे बेकल बेबस रहने दो। 

कभी प्यार था अपना दीवाना सा 
झिझक भी थी एक अदा भी थी, 
सब गुजर गया एक मौसम सा 
अब याद का पतझड़ रहने दो। 

तुम भूल गए क्या गिला करें 
तुम, तुम जैसे थे हम जैसे नहीं, 
कुछ अश्क़ बहेंगे याद में बस 
अब दर्द का सावन रहने दो। 

तेरे सुर्ख लबों के रंग से फिर 
मुझे बिखरे ख्वाब संजोने दो, 
मैं हूँ प्यार का मारा बेचारा 
मुझे बेकस बेखुद रहने दो।

Friday, March 9, 2018

जितना तुम बदले

माना कि मोहब्बत की ये भी एक हकीकत है फिर भी, 
जितना तुम बदले हो उतना भी नहीं बदला जाता।


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जो आँखों से रिसता है...

ऐ जिंदगी तू ही बता... 
पहले अधूरी थी मैं 
या अब अधूरी हूँ मैं! 

ऐ जिंदगी अब तू ही बता.. 
ये कौन सा रिश्ता है जो 
मेरी आँखों से रिसता है!


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